Ajay

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जुस्तजू भाग --- 7

बात दिल की:-

 इस कॉलम को शुरू करने की वजह केवल आप ही है जो मेरी रचना को पढ़ने के लिए अपना कीमती समय देते हैं और अपने हाथों से कभी कभी तारीफ़ के फूल भी बरसा देते हैं। अपनी पूर्व रचनाओं में मैंने महसूस किया कि आपसे बात भी चलती रहनी चाहिए। पर अफ़सोस कि पिछला भाग आपका प्यार न पा सका। पर  इस रचना का प्रमुख भाग है वो। क्यों, तो आपसे शेयर करता हूं। इस भाग में मैंने नारी शक्ति को नमन किया है। वह जो केवल हम पुरुषों से एक संबंध में जुड़कर अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वर्षों और जन्मदाता रिश्तों को पल भर में दूरी बनाकर हमारे रिश्तों को अपना लेती है। वह, जो इस बात की परवाह किए बिना कि यह रिश्ता उसकी मर्जी से जुड़ा या किसी और की पसंद से, हमें अपना सब कुछ मान लेती है और हमें अपने से जुड़े रिश्ते का सबसे अनमोल उपहार देती है हमारी पीढ़ी को आगे बढ़ाकर।
तो नारी तुझे एक बार फिर नमन 🙏🏻🙏🏻
अब इस रचना के लिए। कभी कभी जिंदगी खुद विलेन होती है पर हम इसकी परीक्षा में खरे उतरे तो आत्मा को सुकून देती है और घबरा गए तो घनचक्कर भी बना देती है। 
बस बहुत बोर कर दिया न !! अब चले रचना पर ??


हर बार भरोसा किया पर छल जाती है तू, ए जिन्दगी !!
कभी दगा, कभी वफ़ा ! सच बता, हैरान हूं मैं।

आज से पहले वही आख़री मुलाकात थी उसकी। उसके वादे पर भरोसा किया, अपने तन मन से चाहा था उसे। पर वह !! वह तो बेवफ़ा निकला !! कितना ढूंढने की कोशिश की, कितना इंतजार !! लोगों की सवाल पूछती नजरों का सामना किया। उसके इंतजार में ख़ुद को भूलने लगी कि काउंसलिंग की आखिरी तारीख भी आ गई। उसकी कुछ कलीग को पता लगा तो जबरदस्ती उसे लेकर ऑप्शन दिलवाए। उसे बनारस मेडिकल कॉलेज मिला था। जाने से पहले उसने जॉब के लिए अप्लाई भी कर दिया था तो वह भी बनारस के पास मिला, गाजीपुर। उसके एजुकेशन रिकॉर्ड और जॉब प्रोफ़ाइल से उसे एम एस करने की अनुमति मिल गई थी। वहीं एम एस करते हुए उसे पता चला कि उसकी शादी का फल उसकी कोख में आकार ले चुका था।  वहीं हॉस्पिटल में कोई मां को बेहद ख़राब हालातों में भर्ती करा गया। उनके परिवार का कोई पता नहीं चल सका था। इलाज़ के दौरान ही उसे अपने अकेलेपन का साथी नज़र आया उनमें। और मां का संबंध जोड़ लिया। अब वे एक दूसरे के सुख दुःख बांटने लगे। बच्चे के जन्म के समय मां ने अपनी बेटी की तरह संभाला था और खर्चों के लिए इस नौकरी का सहारा मिल गया था। वह बस जिए जा रही थी उसके इंतज़ार में। पूछना चाहती थी कि अगर छोड़ देना ही था तो आस क्यों बंधाई थी ? बेटे का नाम भी वह सोच नहीं पाई थी बस जो मां पुकारती, वही उसने पुकारना शुरू कर दिया था।
और आज फिर मिले भी तो कैसे हालातों में !! वह कुछ पूछ पाती कि जनाब अपनी सेवा करवा रहे थे उससे। वह भी बेहोश पड़े हुए !! 

"आपको छोडूंगी नहीं बिना अपने सवालों के उत्तर लिए। पहले जरा होश में तो आइए !!" उसने फिर अनुपम के शरीर का टेंपरेचर चैक किया। अब बुखार उतर रहा था। उसके मन को कुछ आराम मिला तो दिन भर की थकान, सुबह 3 बजे से अब तक बिना सोए रहने के कारण उस पर नींद हावी होने लगी। उसे पता नहीं चला कब वह नींद के आगोश में चली गई और अनुपम की बांह पर सर रखकर आधी कुर्सी पर और आधी पलंग पर सो गई।

सुबह 3 बजे अनुपम भी होश में आने लगा। उसे अपनी बांह भारी महसूस हो रही थी। कुछ वक्त लगा सब समझने में, फिर अपने बांह पर आरूषि को सोए देखकर जैसे उसे वह मिल गया जिसकी तलाश में बैचेन थी उसकी आंखे !! उसकी यादें फिर जीवित हो उठी थी।

आरूषि को ट्रेन में बिठाकर अनुपम लब्सना लौट आया था। अपने ट्रेनिंग पूरी करने के बाद की फॉर्मेलिटीज पूरी कर दी उसने। अब पोस्टिंग और कैडर मिलना बाकी था। उसे याद था कि उसे अपनी मां को मिलना था जो उदयपुर में उसके दादा जी के घर पर उसका इंतज़ार कर रही थी। मां बेहद कम रिएक्ट करती थी पर वह जानता था कि इस पत्थरदिल के पीछे उनका बेहद नर्म कोना था उसके लिए। पिता के असामयिक निधन के बाद उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से सारी परिस्थितियां संभाली थी पर अपने नेचर के अनुसार वे सपोर्ट पर बिलीव नहीं करती थी बल्कि परिस्थितियों का सामना करना सिखा देती थी। मां पापा से बेहद प्यार करती थी और उसके लिए सारे सामाजिक विरोध दरकिनार करके विवाह किया था। अपने कैरियर को छोड़कर हाउस वाइफ होना चुना था उन्होंने। यही नहीं उन्होंने पिता द्वारा ली गई हर ज़िम्मेदारी को अंजाम दिया था। आरूषि का सपोर्ट भी इसी अंदाज में किया था उन्होंने। वह भी तो आईआईटी की पढ़ाई पूरी करके अपने विदेश में नौकरी और हमेशा के लिए वही बस जाने के सपने को छोड़कर लौट आया था अपने माता पिता के सपने को पूरा करने। अब जब वह पूरा हो रहा था तो मां इसे अपने ससुराल में उसके पिता और दादा जी की तस्वीरों और घर में उनका आशीर्वाद लेते देखना चाहती थी। वह फिर से कार से ही रवाना हो गया। प्लान दिल्ली में रुककर जाने का था पर एक्साइटमेंट में उसने जितना चला सकता था, चलने का फ़ैसला ले लिया था।

"जब आपको पता चलेगा कि ईश्वर ने आरूषि को आपकी बहू बना दिया है तो आपको कैसा लगेगा ? आप स्वीकार लेंगी न ? हां आप वहां नहीं थी आपका आशीर्वाद उसे नहीं मिला। उसे हमने नहीं चुना पर ईश्वर ने पापा की तमन्ना पूरी कर दी मम्मी !! आप भी तो उसे संभालती आ रही थी। अब तो उस पर अधिकार है आपका।"

मन में विचारों की श्रंखला चल रही थी। उसे चलाते 12 घंटे से अधिक वक्त हो गया था। अचानक एक ट्रेलर डिवाइडर तोड़कर उसकी लेन में घुस गया। शायद थकान और मन की उलझनों ने उसे संभलने का समय नहीं दिया।

एक्सीडेंट में उसे बेहद गम्भीर चोटें आई थी। 4 महीने कोमा में रहा और 2 माह फिर से संभलने में लगे उसे। होश में आने के बाद हर पल वह आरूषि को याद करता और उसे खोजने की कोशिश। वहीं मां अपने बेटे को फिर से अपना जीवन जीते देखना चाहती थी। वह अपनी मां के संघर्ष और उनकी सीमाओं को जानता था। मां को सब बता दिया उसने। मां ने भी अपनी शक्ति भर ढूंढने के प्रयास किए पर पता नहीं लगा पाई। आख़िर कौन सोच सकता था कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर रह रही होगी !!

"बड़ी मुश्किल से मिली हो अब नहीं दूर होने दूंगा। कल का सवेरा और आपका इन्तजार ख़त्म। चाहे जितना गुस्सा निकालना है, निकाल लेना पर खुद से दूर नहीं रहने दूंगा।" उसने बेहद हल्के से आरूषि के सर पर हाथ फिराते हुए मन में कहा। शायद मन की उलझन दूर होने का असर था। वह भी फिर से सो गया।

"दी, कॉफी।"सौम्या की आवाज़ ने उसे जाग्रत कर दिया था। उसे अपनी अवस्था जानकर शर्म महसूस हुई।

"पता नहीं कब नींद आ गई। जरा चैक तो करना अब ये अपने घर जा सकते हैं या नहीं।" उसने सौम्या से कहा।

"अब ठीक है ये, और आप उठिए आज ही आपको गाजीपुर निकलना है तो चार्ज की फॉर्मेलिटी कंपलीट करनी होगी। 3-4 घंटे लग जायेंगे। तो जल्दी से तैयार हो जाइए मैं चार्ज लेने को रेडी हूं।" इतना कहकर सौम्या हॉस्पिटल चली गई थी। आख़िर शिफ्टिंग होनी थी शेष की और जिनकी हालत घर जाने की थी उन्हें डिस्चार्ज भी करना था। उसने हॉस्पिटल से दूसरे डॉक्टर को कलेक्टर साहब को देखने और एसडीओ को उनके ठीक होने का संदेश भेजने का निवेदन भी कर दिया था।

आरूषि भी जल्दी से तैयार होकर हॉस्पिटल पहुंच गई थी आखिर अभी वही इंचार्ज थी।

अनुपम उसके जाते ही जाग गया था और डॉक्टर के पहुंचने पर चेकअप करवाकर तैयार होने के लिए स्टॉफ को संदेश भेज दिया था।

"सर, आप चाहें तो सरपंच साहिबा ने आपकी सारी व्यवस्था करवाई है" एसडीएम ने उससे विनम्र शब्दों में कहा।

"अरे!! ऐइसे कईसन ? बिटवा रात भर बुखार में तपत रहली और कछु न खाई सकिल ! हम इनका आइसे न जाबै देब !" मां ने नाराजगी से कहा।

"मैं यहीं तैयार हो जाता हूं। आपसे अनुरोध है कि कोई पर्सनल उपयोग के लिए कार अरेंज हो सकेगी ! " अनुपम ने एसडीएम को कहा।

"सर, मेरी गाड़ी मंगवा देता हूं। कार छोटी है पर यदि आपके काम आ सकी तो मुझे खुशी होगी।"एसडीएम ने कहा।

"आपका एहसान रहेगा मुझ पर। कार गाजीपुर से भिजवा दूंगा।"

"ठीक है सर, मैं व्यवस्था करवाता हूं।"

"नाही छोटे साहब, आपन के भी नाश्ता करने होइल।" तभी मां नाश्ते के साथ आ गई।

अनुपम तैयार हो चुका था। तभी घर के  सबसे छोटे मुखिया साहब भी उठकर आ गए।

"अंतल, आप दा लहे है ?" 

अनुपम उसे गोद में लेने का मोह नहीं छोड़ पाया। "नहीं आप भी साथ चलेंगे।"
मां हतप्रभ थी यह बात सुनकर। अनुपम ने सारी स्थिति उन्हें समझा दी।

"देखो बिटवा ! सही गलत हमनी के पता नाही रहिल पर जौन आरूषि बिटिया चाहत रहिल, वही हौबे !"

"आप विश्वास कीजिए मुझ पर। मैं उसकी नाराजगी ख़त्म कर दूंगा। बस आप साथ दीजियेगा।"




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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Feb-2022 05:34 PM

बहुत सुंदर लिखा आपने सर

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Ajay

07-Feb-2022 01:57 AM

कहानी पूरी हो चुकी है। इसे पूरा पढ़िएगा और आपके विचारों से अवगत करियेगा। आपका हर भाग पर समीक्षा देना सुखद अनुभव है।🙏🏻🙏🏻

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मिलना बिछड़ना किस्मत की बात है।

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Ajay

29-Dec-2021 11:20 PM

इस कहानी में सारा खेल किस्मत का ही है 🙏🏻

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Sandhya Prakash

15-Dec-2021 06:54 PM

Bahut badhiya...!

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Ajay

15-Dec-2021 08:44 PM

धन्यवाद संध्या जी

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